बौखलाए किसान सड़कों पर क्यों बिखेर रहे हैं दूध और सब्जियां?

किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पकड़ रहे हैं. किसानों की लड़ाई इस बार सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं सिमटी है. आठ राज्यों के किसान इस बार दस दिनों की हड़ताल पर हैं. किसान अपना धंधा-पानी दस दिनों तक चौपट करने के मूड में हैं. उन्हें न कुछ बेचना है न कुछ खरीदना है. किसानों ने इस बार ठान लिया है कि शहर में कुछ भी बेचना नहीं है. न दूध, न सब्जी, न साग. कुछ भी नहीं. मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में किसानों ने दूध और सब्जियां सड़कों पर डाल दी हैं. किसान आने वाले दिनों में अपने अधिकारों के लिए और क्या करते हैं यह देखने वाली बात होगी.

किसी भी सरकार को किसानों की सुधि नहीं है. पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान किसानों को झांसा देने में जरा भी कोताही नहीं करती. पार्टी चाहे कांग्रेस हो भाजपा. क्षेत्रीय पार्टियां भी ऐसा ही झांसा देकर सत्ता में आती हैं और जीतने के बाद किसानों पर लाठियां बरसाते हैं.

किसानों का गुस्सा सरकार से है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश क्यों लागू नहीं किया जा रहा है. प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया गया. 2006 के अंत तक कमेटी ने किसानों की भलाई के लिए रिपोर्ट सबमिट की. किसानों की भलाई के लिए लगातार दो वर्षों में छह रिपोर्ट तैयार किए गए. इन रिपोर्ट्स में किसानों की आर्थिक दशा सुधारने से लगायत खेती को बढ़ावा देने जैसे कई मुद्दे थे. अगर इन रिपोर्ट्स को लागू कर दिया गया होता तो देश के किसानों की दिशा और दशा दोनों बदल गई होती. किसान हाशिए पर नहीं खड़ा रहता.

हर सरकार कहती है कि स्वामीनाथन आयोग की शिफारिशें लागू कर दी जाएंगी लेकिन लागू कोई नहीं करता. न जाने किस जगह कृपा अटकी रहती है. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश है कि जितना खर्च किसान को फसल बोने और काटने में लगता है उसका पचास प्रतिशत से अधिक दाम किसानों को मिले. ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की मदद के लिए अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में उपलब्ध कराए जाएं.

गांव में कोई ऐसी जगह बनाई जाए जहां से किसानों को खेती से संबंधित जानकारी मिलती रहे. ग्रामीण महिलाओं के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की भी व्यवस्था कराई जाए. किसी दशा में अगर कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो किसानों की मदद के लिए एग्रिकल्चर रिस्क फंड बनाया जाए जिससे उन परिस्थितियों किसान संभल सकें.

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में केवल इन्हीं बातों का जिक्र नहीं है. जो जमीन लंबे वक्त से इस्तेमाल नहीं हो रही हो लेकिन कृषि योग्य हो उसे किसानों को बांटा जाए. कर्ज हर किसान के लिए सुलभ हो लेकिन कर्ज वसूली में बैंक रियायत बरतें. ठीक उसी तरह जैसे विजय माल्या, कोच्चर खानदान, टाटा-बिड़ला, नीरव मोदी को रियायतें मिलती हैं, उतनी नहीं, बस इतनी ही कि उन्हें खुद को खत्म न करना पड़े. कृषि ब्याजदर अन्य ब्याज दरों से कम घोषित की जाएं.

आंदोलनरत किसानों को भी यह पता कि उन्हें इस बार भी केवल झांसा दिया जाएगा. महाराष्ट्र में भी उन्हें यही मिला. मंदसौर में तो गिफ्ट में मौत भी नसीब हुई. देखतें हैं इस बार उन्हें क्या मिलता है. किसानों के आंदोलन को कोई इस बार भी बेच लेगा. चुनाव आने वाले हैं. कांग्रेस भी उन्हें साधेगी, भाजपा भी. गठबंधन वाली कांग्रेस  अगर किसानों को खुश कर ले गई तो उसकी 2019 में बल्ले-बल्ले हो सकती है. किसानों का यह आंदोलन भी वैसे ही न रह जाए डर इसी बात का है.

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