नज़र आता है डर ही डर, तेरे घर-बार में अम्मा
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा.
यहाँ तो कोई भी रिश्ता नहीं विश्वास के क़ाबिल
सिसकती हैं मेरी साँसें, बहुत डरता है मेरा दिल,
समझ आता नहीं ये क्या छुपा है प्यार में अम्मा
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा.
मुझे तू कोख में लाई, बड़ा उपकार है तेरा
तेरी ममता, मेरी माई, बड़ा उपकार है तेरा,
न शामिल कर जनम देने की ज़िद, उपकार में अम्मा
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा.
उजाला बनके आई हूँ जहाँ से मुझको लौटा दे
तुझे सौगंध है मेरी, यहाँ से, मुझको लौटा दे,
अजन्मा ही तू रहने दे मुझे संसार में अम्मा
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा.
नज़र आता है डर ही डर तेरे घर-बार में अम्मा
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा.
(यह कविता शायर आलोक श्रीवास्तव के फेसबुक टाइमलाइन से ली गई है. शायर आलोक श्रीवास्तव भारत के चर्चित गजलकार हैं. शायरी के साथ-साथ पत्रकारिता करने वाले आलोक दुनिया भर में कई हिंदू-उर्दू मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है.)