8 नवंबर 2016 बहुत ही सुहाना दिन था। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि इतने शानदार दिन को इतिहास में अंग्रेजी और हिंदी के भीषणतम शब्दों के साथ याद किया जाएगा। खैर, देश के प्रधानमंत्रियों को इतना हक तो होता ही है कि वह किसी दिन को इतिहास बना सकें। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने इतिहास में दर्ज कराया तो नरेंद्र मोदी क्यों पीछे रहते। 2016 में सुहानी शाम के समय मोदी जी ने अपना सबसे पसंदीदा काम किया (भाषण दिया) और ऐलान किया कि जितने भी 500 और 1000 के नोट अब बंद हुए। मतलब इनको भी अब मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया जाएगा।
बस फिर क्या था, मच गई अफरा-तफरी। लोगों ने खोदाई शुरू की और न जाने कहां-कहां से नोट निकलने लगे। इस नोटबंदी का उद्देश्य भी यही बताया गया था कि सारा काला धन इधर से निकल आएगा और अर्थव्यवस्था एकदम क्लीन हो जाएगी। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे, लेकिन दो-तीन दिन के अंदर ही तर्क तैयार हो गया कि जितने नोट सर्कुलेशन में हैं, उनका 70 पर्सेंट ही वापस आएगा। भक्तों में खुशी की लहर दौड़ी, टीवी ऐंकरों को पैकेज मिल गया। आम-जनता इस बात से खुश कर दी गई कि अमीरों के सारे पैसे बर्बाद हो गए।
आतंकियों और नक्सलियों को कुछ नुकसान हुआ?
फर्जी राष्ट्रवादियों द्वारा तर्क बांटे गए कि आंतकियों और नक्सलियों को मिलनेवाली फंडिंग रुक जाएगी और देश को आतंक से निजात मिल सकेगी। ऊपर-ऊपर से बहुत अच्छा फैसला साबित किया जा रहा था। हालांकि, दो सालों में आतंकी और नक्सली घटनाओं की लगातार बढ़ती संख्या ने इस दावे को पूरी तरह झूठा साबित किया है। टेरर फंडिंग लगातार हो रही है और नक्सल प्रभावित इलाकों में आम लोग आज भी सुरक्षाबलों या नक्सलियों का निशाना बन ही रहे हैं।
खैर, किसी तरह नोटबंदी का दौर धीरे-धीरे गया और 500 और 2000 ने नोट मार्केट में लाए गए। कुछ लोगों को चिप भी दिखी, जो जेटली बाबू लगाना ही भूल गए थे। सिक्यॉरिटी प्रूफ इन नोटों के नकली नोट भी मार्केट में आए और फिर से सब जस का तस हो गया। डिजिटल करेंसी का एक अच्छा काम शुरू हुआ लेकिन ज्यादा दिन चला नहीं। जिन लोगों ने डिजिटल पेमेंट शुरू भी की थी, उन्होंने भी 500 का नोट हाथ में आते ही इस आदत को छोड़ दिया और फिर से उसी सिस्टम पर आ गए।
99 पर्सेंट तो लौट के आ गए, अब क्या?
धीरे-धीरे चीजें सामान्य हो गईं और सवाल यह सामने आया कि नोटबंदी सफल हुई या असफल? नोटबंदी के बाद जो पैसे बैंकों में जमा किए गए उनको गिनने में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को लगभग डेढ़ साल लग गए और जो आंकड़े आए उसने सीधे शब्दों में बता दिया कि कोई पैसा लैप्स नहीं हुआ बल्कि लगभग सारा पैसा ही वापस आ गया। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 99.3 पर्सेट नोट वापस आ गए। ऐसे में यह दावा कि अवैध धन रखनेवाले अपना धन छिपा लेंगे यह गलत साबित हुआ।
यहीं से शुरू होती हैं सिस्टम की खामियां। कहा गया कि जो लोग अवैध धन रखनेवाले हैं, उन्हें या तो धन का सबूत देना होगा या फिर जेल जाना होगा। हालांकि, यह सवाल अभी भी है कि नोटबंदी में अवैध पैसा जमा करनेवाले कितने लोग जेल गए। हां, कुछ बैंक कर्मचारी पकड़े तो गए लेकिन बैंक कर्मचारियों के नेक्सस के नाम पर कुछ की गिरफ्तारी ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर ही थी।
नोटबंदी को लेकर लोगों के मन में जो खौफ था, वह भी जाता रहा और धीरे-धीरे सारे पैसे किसी न किसी रास्ते से वापस आ गए। अब अवैध संपत्ति जमा करनेवालों पर कार्रवाई होगी, इसकी गुंजाइश बहुत कम ही है।
सिस्टम सड़ा क्यों है?
निजी तौर पर मेरा मानना है कि यह गलती प्रधानमंत्री या नोटबंदी का फैसला लेने वालों की कम और हमारे तंत्र यानी सिस्टम की ज्यादा है। हमारा सिस्टम हमें सबसे पहले इसमें लूपहोल बनाने की इजाजत देता है। आप नोटबंदी लाइए, हम उसका तोड़ निकाल लेंगे। आप 2000 और 500 के नोट बंद करिए हम इतने जमा कर देंगे कि आप दो साल गिनेंगे और फिर कुछ कर भी नहीं पाएंगे। बल्कि मुझे तो इस आंकड़े पर ही शक है। मेरा मानना है कि जो पैसे जमा हुए वो 100 पर्सेंट से भी ज्यादा हैं और उसमें बहुत सारे नकली नोट भी जमा कर लिए गए।
आप 2016 और 2017 के अखबार उठाइए तो आपको समझ आ जाएगा कि किस हद तक भ्रष्टाचार हुआ है। कहीं नोट जलाने भी गए, कहीं नदी में बहाए गए लेकिन आंकड़ा बाद में पूरा हो गया। फिर ये 99 पर्सेंट नोट कहां से आए? जवाब है सिस्टम। हमारा सिस्टम हमें आजादी देता है कि कुछ भी अनैतिक करिए ये आपको छोड़ने के हजार तरीके निकाल लेगा।