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लोकल डिब्बा

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Category: कविताई

बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना

बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना

लोकल डिब्बा टीमJanuary 7, 2021November 24, 2022

फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहनाबहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना. किसे चाहें किसे…

रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है

रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है

लोकल डिब्बा टीमOctober 12, 2020November 16, 2022

रात अब दरवाज़े पर खड़ी है रह-रह के सायरन की सदा आ रही है.

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी…

लोकल डिब्बा टीमAugust 15, 2020November 16, 2022

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी. दिल में रह-रह मौज उठेगी आज़ादी…

सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

लोकल डिब्बा टीमJune 27, 2020November 16, 2022

अब नहीं हैं प्रणययार्थी, न उनकी गणिकाऐं, वो गदिराए बदन भी नहीं हैं जिनपर लिख सको कामसूत्र जैसा ग्रंथ तुम…

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

लोकल डिब्बा टीमJune 26, 2020November 16, 2022

इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो…

हम फिर वापस आएंगे!

हम फिर वापस आएंगे!

लोकल डिब्बा टीमMay 31, 2020November 16, 2022

फिर से हम जिन्दा लाशें,अपने मरे हुए सपनों से, नाउम्मीदी ओर जिल्लत की जिंदगी सेफिर से हम आपके रुके हुए…

शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव

शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव

लोकल डिब्बा टीमMay 11, 2020

माना अपने गांव में, रहता बहुत कलेस। कुल पीड़ा स्वीकार है, ना जाइब परदेस।

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

लोकल डिब्बा टीमMarch 9, 2020November 16, 2022

डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

लोकल डिब्बा टीमOctober 3, 2019November 24, 2022

आप की याद भी बस आप के ही जैसी है, आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।

नज़्म ‘औरत’: माथे पर लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती

नज़्म ‘औरत’: माथे पर लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती

लोकल डिब्बा टीमMarch 8, 2019November 24, 2022

माथे पे लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती… जब भूख लगी तब मैं, या प्यास लगी जब तब मैं हाथ लगी…

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