आंबेडकर का रंग चाहे जितना बदलो ‘असली वाला’ 2019 में दिखेगा

dr ambedkar

2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हालत पतली होने के बाद नरेंद्र मोदी ने खुद को विकास-पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट किया। ऊपरी तौर पर वह खुद को विकास पुरुष बताते लेकिन हिंदू वोटर्स कुछ अलग ही लक्ष्य हासिल होता देख खुश हो रहे थे। इन हिंदुओं में हर जाति के लोग शामिल थे। कुछ को सचमुच विकास चाहिए था तो कुछ को ‘गुजरात जैसा भारत।’ नरेंद्र मोदी आए और 4 साल इस बहाने में निकाल गए कि 70 साल में ‘खराब’ हुआ है समय लगेगा।

मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने वह सब हासिल कर लिया, जो कांग्रेस को मुफ्त में मिल गया था। 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी। लगभग हर तरह की ताकतों पर बीजेपी का कब्जा होता चला गया लेकिन बीजेपी-आरएसएस आखिरकार सवर्ण और दलित साझने में उलझ गई। एक समय हिंदू एकता की बात करने वाली बीजेपी ‘अपनों’ को यह नहीं समझा पाई कि एक रहो।

विपक्ष को एक मौके का इंतजार था और वह मौका एससी-एसटी ऐक्ट पर आए कोर्ट के फैसले ने दे दिया। धीरे-धीरे मोदी के खिलाफ लामबंद हो रहीं पार्टियों को मुद्दा मिल गया ‘दलित हित।’ बीजेपी ने भी इन दलितों को साधकर ही बहुत कुछ हासिल किया था लेकिन इस एक फैसले ने एक बार फिर से लड़ाई मंडल बनाम कमंडल जैसी बना दी।

भारत बंद ने दिया विपक्ष को मुद्दा

दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए भारतबंद में हिंसा भड़की और विपक्ष का गणित सेट होते देख बीजेपी बेचैन हो उठी। 10 अप्रैल को यूपी के बदायूं से खबर आई कि भीमराव आंबेडकर की एक प्रतिमा लगाई गई जिसका रंग भगवा रखा गया। मामला बढ़ा और मीडिया में हल्ला हुआ तो एक बीएसपी नेता ने मूर्ति को फिर से नीला कर दिया। इस भगवा-नीला की लड़ाई में एक चीज जो साफ दिखती है वह है 2019 में आंबेडकर का जरूरी होना। अब यह स्पष्ट है कि 2014 का जो चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम कर दिया गया था उसे ही इस बार भगवा बनाम नीला यानी दलित बनाम सवर्ण हिंदू किया जाएगा। कोशिशें दोनों तरफ से भरपूर हो रही हैं, नजीते भी नेताओं को दिख ही रहे हैं।

नुकसान समाज का है

जो लोग 2014 में आपस में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर लड़ रहे थे, वही इस बार ठाकुर, पंडित और दलित के नाम पर लड़ने लगे हैं। नुकसान या फायदा जो होगा बीजेपी और अन्य का होगा लेकिन आपस में समाज और खुद को बांटने का काम हम खुद कर रहे हैं। पार्टियां जाति के आधार पर टिकट देने को तैयार बैठी हैं और हम उसी आधार पर वोट देने को। इसी से साबित हो रहा है कि 2019 तक आंबेडकर का रंग बदले जाना, उनकी मूर्तियों को तोड़े जाना जारी रहेगा।

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