ट्रोलिंग और पोस्टट्रुथ को क्रांति मानते हो तो आज के युवा हो तुम..!

करीब डेढ़ साल पहले की बात है. एक मीडिया संस्थान के वार्षिक कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई पी चिदंबरम की तरफ बैक टू बैक दो सवाल उछालते हैं. पहला सवाल, क्या आप मानते हैं कि दुनिया ‘पोस्टट्रुथ’ की तरफ बढ़ रही है? दूसरा सवाल, क्या आज की भारतीय राजनीति ‘संसदीय घाटे’ के दौर से गुजर रही है. जाहिर सी बात है विपक्ष में बैठे चिदंबरम का जवाब हां में ही रहा होगा. हालाकि कार्यक्रम के उस सेशन में इस सवाल पर बहुत ज्यादा बहस नहीं हो पाई थी.

पोस्टट्रुथ पर तो उस दौरान और उसके बाद भी देश-दुनिया में खूब बहसें हुईं. भारत से लेकर अमेरिका और रूस से लेकर फ्रांस तक राजनीति और विमर्श में बार-बार पोस्टट्रुथ का जिक्र चलता रहा लेकिन ‘संसदीय घाटे’ पर बहस बहुत कम हो पाई.

एक ताजा वाकया, पिछले दिनों संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चर्चा का जवाब दे रहे थे तो रेणुका चौधरी पर उनकी टिप्पणी के बाद संसद के अंदर और संसद के बाहर खूब ठहाके लगे थे. पीएम मोदी की टिप्पणी और रेणुका चौधरी की हंसी उन दिनों मीडिया की सुर्खियों का प्रतिनिधित्व कर रहीं थीं. लेकिन टिप्पणी क्यों की गई और हंसी क्यों निकली इस पर सुर्खियां बेहद कम थीं.

एक बहुत पुराना वाकया, जो इससे पहले भी कई बार पढ़ा जा चुका है और लिखा जा चुका है. बात 1980 की है, जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद देश में फिर से चुनाव हो रहे थे. दिल्ली में डीटीसी की बस में एक बुजुर्ग और एक नौजवान चुनावी बहस कर रहे थे. बुजुर्ग जनता पार्टी के समर्थक थे जबकि नौजवान संजय गांधी का भक्त यानी पक्का कांग्रेसी था.

बहस लगातार तीखी होती जा रही थी. अचानक नौजवान ने बुजुर्ग को भरी बस में तमाचा मार दिया. तिलमिलाए बुजुर्ग ने बस रुकवाई और उतरते वक्त सबके सामने उससे कहा कि कभी अपनी शक्ल लेकर मेरे घर मत आना. अपनी बेटी से तुम्हारी सगाई मैं आज ही तोड़ता हूं!

दरअसल, इन कहानियों में ना कोई पार्टी अहम है, ना सरकार अहम है, सबसे ज्यादा अहमियत है तो शूर्पनखायुक्त उस टिप्पणी का, संसद में उस हंसी का और बुजुर्ग के गाल पर लगे उस तमाचे की अहमियत है, जिसने मर्यादा के धागे पर तगड़ी चोट पहुंचाई. और अहमियत है कि उस क्रम का जो आज इस स्तर पर पहुंच चुकी है.

इन घटनाओं के बीच बहुत सारी ऐसी घटनाएं हुईं होंगी और होती हैं व्यक्तिगत जीवन में भी, जिसने मर्यादा की दिशा को इस तरफ मोड़ दिया कि आज राजनीतिक और सामाजिक विमर्श पोस्टट्रुथ और ट्रोलिंग के दहलीज पर पहुंच गए. और सबसे दिलचस्प ये है कि आज का युवा इसी राजीतिक विमर्श के बीच खुद को खड़ा पाता है.

एक बात साफ है कि इस माहौल के लिए सिर्फ युवा ही जिम्मेदार नहीं है, इसके पीछे बहुत सारी चीजें, बहुत सारा माहौल एक साथ जिम्मेदार हैं. ये हमें तय करना है कि हम किस सीमा तक समझ और समझा पाएंगे. और राजनीति को किस तरीके से पेश करना है, इसका भी निर्णय करना होगा. क्योंकि अगर प्राथमिकताएं अपरभाषित हों तो चेक एंड बैलेंस की बहुत ज्यादा जरूरत है. वरना सोशल मीडिया और सूचना क्रांति के इस भीषण दौर में हम भूल चुके होंगे कि हम कहां पहुंच गए हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *