ये तस्वीर दिल्ली के दिवाली के बाद की है। जैसे हर त्यौहार पूरे देश में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है, वैसे ही दिवाली भी पूरे देश में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। उत्तर भारत खासकर यूपी बिहार के गांवों में खिलौने वाली मिठाई अनिवार्य होती है। घी के दिए अनिवार्य होते हैं। पूर्वोत्तर में नए कपड़े और नृत्य की परंपरा है। पश्चिम में रंगोली खेली जाती है। दक्षिण भारत में संगीत और मूर्तियों की पूजा होती है। मध्य भारत और छत्तीसगढ़ जैसी जगहों पर भी घरों की रंगाई पुताई कर धूमधाम से दिवाली मनाते हैं।
लेकिन दिल्ली वाले अगर पटाखे नहीं फोड़े तो उनको लगता है कि दीपावली अधूरी रह गई। वो ये नहीं सीखते कि भारत के बाकी राज्यों की तरह हम अपने हिस्से की दिवाली की कोई परिभाषा क्यों नहीं दे पा रहे हैं, क्यों हम पार्टी और पटाखों में उलझे रह जाते हैं।
वापस फोटो पर आते हैं। दरअसल, ये फोटो दिल्ली की दिवाली की तस्वीर बयां करती है। दिल्ली वालों को हर बार लगता है कि सबसे शानदार दीपावली वे ही मनाते हैं। वे अन्य राज्यों को नहीं देखते कि वहां पटाखे कम दिये ज्यादा जलाए जाते हैं। हालाकि पटाखे पूरे देश में फोड़े जाते हैं, लेकिन पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा पटाखों की बिक्री दिल्ली एनसीआर में हुई थी।
दिल्ली वाले इतना वीआइपी होते हैं कि ना ही वे सरकार की सुनते हैं और ना ही देशवासियों की। तो इस बार सुनाने का बीड़ा उठाया सुप्रीम कोर्ट ने। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने सुना तो पिछले साल ही दिया था, लेकिन इस साल साफ कर दिया कि दिल्ली वाले बिना पटाखे की दिवाली मनाएंगे। कुछ को तो समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हुआ। उनको समझ इसीलिए नहीं आया क्योंकि हर दीवाली के बाद उनके द्वारा घोले गए जहर की हिस्सेदारी बगल वाले राज्य भी बांट लेते रहे हैं। साथ ही ये जहर दिल्ली में रहने वाले दूसरे राज्यों के लोग भी मिलबांट कर पी जाते हैं। खैर, बहुत देर से ही सही, इस पर लगाम लगती दिख रही है।
वैसे एक बात और कि त्यौहारी सीजन में यूपी वाले एक लोकगीत गुनगुनाते रहते हैं कि फुलौरी बिना चटनी कैसे बनी। अब दिल्ली वाले इस दिवाली पटाखे तो फोड़ नहीं सकते कम से कम इस गीत के अंतरे को बदलकर ‘पटाखा बिना दिवाली कैसे मनी’ गा सकते हैं।