मीडिया का ग्लैमर और वास्तविकता

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लाइट कैमरा एक्शन के साथ शुरू होने वाली हर चीज़ मूवी नहीं होती। एंकर हो या रिपोर्टर एक विशेष आवाज के साथ अपना प्रोग्राम शुरू करते हैं। रंगों से भरी ये दुनिया शायद हर आम आदमी को अपनी ओर खींचती है। मीडिया लाइन का आकर्षण ही ऐसा है कि आप भी इसके मायाजाल से बच नही सकते।
बोलने से लेकर लिखने तक, आपकी आवाज का हो या कलम का जादू बरकरार रहना चाहिए। जब तक आपका जादू है आप मीडिया के लिये भगवान हैं, जहाँ आपका जादू विलुप्त आप मीडिया से किसी दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर फेंक दिये जाओगे।
इश्क का दरिया आप कूदकर शायद पार भी कर लो पर मीडिया का दरिया शायद ऐसा है कि अगर कूद जाओ तो पार न कर पाओ, बस अन्दर ही अन्दर डुबकियां लगाते रहो।

ये कैमरे की दुनिया जितनी रंगीन दिखाई देती है,उतनी ही ब्लैक एन्ड व्हाइट है। हाथ में माइक थामे ये रिपोर्टर, कैमरे की लाइट ठीक करते ये कैमरामैन एक आम आदमी के लिये मीडिया यहीं तक होता होगा।

किसी नेता का इन्टरव्यू लेता संवाददाता बहुत खास सा लगता है ना? मीडिया का आकर्षण ही ऐसा है कि रेगिस्तान में मृग मरीचिका के समान सबको धोखा दे देता है। मीडिया की दुकान लगती ही ऐसी है। यहाँ कलम की धार और आपकी वाणी का प्रभाव बोलता है।

पर आज के दौर में देखा जाए तो प्रिंट मीडिया जो आज भी बुद्धिजीवियों की पसन्द हुआ करता है। उसके पाठकों की संख्या कम होती जा रही है। मैं ये नहीं कहना चाहती कि अखबार लोग कम पढ़ते हैं बल्कि उसके ग्राहक की संख्या बढ़ी है पाठकों की कम हुई है। प्रसिद्ध व्यंग्यकार संपत सरल जी ने कहा है कि अखबारों के ग्राहक बढ़े हैं, पाठक कम हुए हैं।

अब देखते हैं मीडिया का दूसरा रूप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। दूरदर्शन के समाचारों और आज के विभिन्न समाचार चैनलों की तुलना करना गलत होगा पर आप देखिये प्राइवेट न्यूज चैनल पर न्यूज का स्तर कितना है। एंकर या साथ में बहस करने वाले बुद्धिजीवी किसी मुद्दे पर कितनी गम्भीरता से बहस करते हैं, बहस का विषय कांग्रेस से शुरू होकर भाजपा पर समाप्त होता है।

मंजर ये है अखबारों का खबरों के अलावा सब कुछ है,
न्यूज चैनल का बस चले को भारत-पाक युद्ध करवा दें
राशिफल रस्म पगड़ी से पटा अखबार है,
मैं राशि पढ़कर अपनी घर से निकलता हूँ,
किसी रोज जो चैनल देख लूँ जो
मै देश दुनिया की खैरियत रब से करता हूँ

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