चंद्रशेखर: इंदिरा की जेल और राजीव का ‘खेल’ झेलने वाले प्रधानमंत्री

चंद्रशेखर, यह शब्द सुनते ही दिमाग में तीन नाम कौंध जाते हैं। पहला वह आजाद सिपाही, जो कभी दुश्मनों के हाथ नहीं आया, दुश्मनों को मिली तो सिर्फ खीझ और आजाद की लाश। दूसरा चंद्रशेखर वह, जो बागियों की धरती बलिया का सपूत था। चंद्रशेखर संसद में गरजता तो शोर थम जाता था और सबको सुनना ही पड़ता था। तीसरा चंद्रशेखर, जिसने दलितों के हक की लड़ाई के लिए भीम आर्मी बनाई। सत्ता की आंखों की किरकिरी बना और इन दिनों सहारनपुर जेल में ‘सड़’ रहा है।

एक चंद्रशेखर आजादी के दीवानों का चहेता, दूसरा राजनीति को समझने वालों का और तीसरा दलितों के उत्थान की राह देख रहे एक पिछड़े समुदाय का ‘मसीहा’। हम यहां दूसरे चंद्रशेखर यानी बलिया के चंद्रशेखर और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की बात कर रहे हैं। वही चंद्रशेखर जिन्होंने लगातार सांसद रहते हुए भी कभी मंत्रीपद साबित नहीं किया और एक दिन सीधे भारत के प्रधानमंत्री बन गए। चंद्रशेखर के उसूलों और अड़ियलपने का अंजाम यह हुआ कि उनके नाम के आगे कभी कोई और प्रोफाइल ऐड नहीं हुआ। वह सांसद से प्रधानमंत्री बने और राजीव गांधी का मोहरा बनने से पहले ही पद छोड़ दिया।

 

प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते चंद्रशेखर

डॉ.लोहिया और इंदिरा गांधी को दिया जवाब
राजनीति का दोहरापन चंद्रशेखर को कभी छू नहीं पाया। निर्भीकता और स्पष्टता ने उन्हें इस लायक रखा कि युवा नेता होते हुए भी वह अपने सीनियर लोहिया और बाद में इंदिरा गांधी के सामने भी नहीं झुके। डॉ. लोहिया के ज्यादा ‘भाव खाने’ पर उन्हें सीधा जवाब दिया तो इंदिरा गांधी को यह बताया कि वह चाहें तो कांग्रेस तोड़ भी सकते हैं। कांग्रेस की ‘साजिश’ जिसमें यह साबित करने की कोशिश हुई की चंद्रशेखर ने राजीव गांधी की जासूसी करवाई, से चंद्रशेखर इतना खिन्न हुए कि कांग्रेस के समर्थन से बनी सरकार के प्रधानमंत्री पद को छोड़ दिया।

चंद्रशेखर इस कदर बागी थे कि उनसे तमाम नेता हमेशा डरते रहे। चाहे वह इंदिरा गांधी हों, मोरारजी देसाई या फिर राम मनोहर लोहिया। सबको हमेशा यह डर था कि यह आदमी प्रधानमंत्री बनना चाहता है। एक समय इंदिरा गांधी के सबसे खास नेताओं में से एक चंद्रशेखर को इमर्जेसीं के दौरान कांग्रेस का नेता होने के बावजूद भी जेल में डाल दिया गया। जेपी के सबसे पसंदीदा नेताओं में से रहे चंद्रशेखर ने कम समय में ही असली समाजवाद जगाया।

‘राजीव से कह दो मैं एक दिन में तीन बार विचार नहीं बदलता’
बेहद कम समय तक प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर के बारे में कहा गया कि अगर वह लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे होते तो शायद देश की दिशा ही कुछ और होती। इस चर्चा के पीछे का कारण है, उनका स्पष्टवादी और अक्खड़ होना। चंद्रशेखर को लाग-लपेट वाली बातें ना तो पसंद थीं और ना ही खुद वह ऐसी बातें करते थे। प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद चंद्रशेखर को मनाने राजीव गांधी के संदेशवाहक के रूप में शरद पवार पहुंचे। चंद्रशेखर उनके आने की मंशा समझ गए और पवार को जवाब दिया कि जाकर राजीव से कह दो कि चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता। उनके पास मौका था, प्रधानमंत्री बने रहने का लेकिन उन्हें पद से ज्यादा अपनी जुबान प्यारी थी। उन्हें शासक से ज्यादा बागी कहलाना पसंद था और अंत तक उनका वह दबदबा बरकरार रहा।

समाजवादी विचार के चंद्रशेखर के शिष्यों में से एक मुलायम सिंह यादव ने गुरु दक्षिणा के रूप में यह सुनिश्चित किया कि समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार कभी चंद्रशेखर के सामने ना उतरे। मुलायम ने बाद में चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को भी सम्मान दिया और हमेशा सांसद बनवाते रहे। नीरज चुनाव हारे तो मुलायम ने उन्हें राज्यसभा भेजा लेकिन अपने गुरु के एहसान का बदला हमेशा चुकाते रहे।