बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..
डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..
भारत में शादियों का सीजन चल रहा है। हम सब अभी तक ‘पिक-नीक’ और ‘दीपवीर’ की शादियों के हैंगओवर से…
लोकतंत्र में विरोध होना जायज है। जब-तक जनता अपनी स्वस्थ मांगों को लेकर सरकार के सामने विरोध नहीं करेगी तब…