रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है October 12, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है मुझे धोखा हो रहा है कुत्तों के भौंकने...
हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी… August 15, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी. दिल...
सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये June 27, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, सलीम सरमद की नज़्म यात्राएँ... अब वो पगडंडियाँ, पहाड़, बहते धारे नहीं रहे जिनपर चलकर,...
ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म June 26, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, ख़ुदकुशी. ख़ुद से मौत चुनने की विवशता या क्षणिक आवेग. क्या सोचता होगा इंसान उस...
हम फिर वापस आएंगे! May 31, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, आज हम अपने गांव लौट रहें है नंगे पैरों से सूनी सड़कों पर आधे-अधूरे कपड़ों...
शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव May 11, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, माथे पर झोला लिये, मन में लिए जुनून काटो तो पानी बहे, इतना पतला खून।...
बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल.. March 9, 2020 लोकल डिब्बा टीम 0 कविताई, दुनिया के बेशुमार सलाम इन हसीनाओं हव्वाओं के नाम ख़ुश आमदीद एहतराम.. बुर्क़े हटा के...
अग्नि वर्षा है तो है हां बर्फ़बारी है तो है September 24, 2018 लोकल डिब्बा टीम 0 साहित्य, दुष्यंत चले गए. उनकी ग़ज़लें अमर हैं. जिन्होंने दुष्यंत कुमार को नहीं देखा, वे एहतराम...
नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा April 17, 2018 लोकल डिब्बा टीम 0 साहित्य, नज़र आता है डर ही डर, तेरे घर-बार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे...
कविता- तुम जानती हो चुराए हुए चुम्बनों का स्वाद? November 9, 2017 लोकल डिब्बा टीम 0 साहित्य, तुम्हारे कुछ चुंबन बचे हैं मेरे होठों पर कुछ मेरे भी बचे हों शायद तुम्हारे...