मायावती बड़ी नेता हैं। उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी नेता थीं। इतनी बड़ी नेता थीं कि अपने बलबूते कई चुनाव जीते। लेकिन अब उनका चार्म जाता रहा। बदलता समय कहें या फिर राजनीतिक के स्टाइल में बदलाव। मायावती धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो रही हैं। उनके वोटर्स (ज्यादातर दलित वर्ग के वोटर्स) को 2017 में मोदी जी पर भरोसा हुआ। लेकिन अब मामला बदलता दिख रहा है। दलितों के जमीन पर लड़ रहे चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण अब नए नेता बन रहे हैं।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा हो या वक्त की जरूरत। चंद्रशेखर आजाद भी राजनीति में उतरने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी बनाने के साथ ही वह मायावती की बहुजन समाज पार्टी को तोड़ देंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि बसपा के कई पूर्व और वर्तमान विधायक, कई पूर्व सांसद और कई वर्तमान सांसद भी चंद्रशेखर के संपर्क में हैं। अगर सचमुच ये लोग चंद्रशेखर आजाद के साथ जाते हैं तो 2022 के विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर की संभावित पार्टी विधानसभा में खाता खोलकर आसानी से पहुंच सकती है।
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चंद्रशेखर की पॉपुलैरिटी, मायावती की समस्या
पिछले कुछ वक्त में चंद्रशेखर आजाद की सक्रियता ने धीरे-धीरे ही सही उन्हें ऐसा नाम बना दिया है कि लोग उनके पीछे खड़े हैं। एक बड़ा तबका चंद्रशेखर को पसंद करने लगा है। लोगों की यही पसंद मायावती के लिए समस्या का कारण है। मायावती चंद्रशेखर को बीजेपी और आरएसएस का एजेंट बताकर सिरे से खारिज कर देती हैं। वहीं, चंद्रशेखर एक-दो बार को छोड़कर कभी भी मायावती के खिलाफ नहीं बोलते हैं।
क्या बीएसपी में मायावती की जगह ले पाएंगे आकाश आनंद?
मायावती की जमीन पर शून्य सक्रियता ने दलितों को वजह दी है कि चंद्रशेखर को वे अपना नेता मानें। मायावती जमीन पर नहीं दिखतीं। चंद्रशेखर हर मुद्दे पर आंदोलन मूड में दिखते हैं। दुर्घटनाओं के वक्त भी चंद्रशेखर हर जगह पहुंच जाते हैं। जमीन, सोशल मीडिया और सामाजिक चर्चा, ये तीनों जगह ऐसी है, जहां अब चंद्रशेखर की चर्चा होने लगी है। मायावती के कमजोर होने से बने वैक्यूम को भर रहे चंद्रशेखर धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहे हैं और यह कहना भी गलत नहीं है कि वह एक बडे़ वर्ग के नेता भी बन रहे हैं।
चंद्रशेखर में आया बदलाव बढ़ाएगा स्वीकार्यता?
शुरुआत में चंद्रशेखर आजाद की बातें उलझाऊ और अराजकतावादी थीं। वह बात-बात में ‘हम जवाब देंगे’, ‘कुछ कर देंगे’ जैसी बातें बोलकर उस वर्ग को नाराज कर रहे थे, जो शुचिता की बातें करता है। पिछले कुछ महीनों में ‘दिल्ली’ के संपर्क में आने के बाद चंद्रशेखर की ‘राजनीतिक समझ’ काफी सुलझी हुई दिखने लगी है। अब वह संविधान की बात करते हैं। संविधान की धाराओं का जिक्र अपनी बातों में करते हैं। और हर लड़ाई को संवैधानिक ढंग से लड़ने की बात करते हैं।
ये सभी चीजें चंद्रशेखर को पहले की अपेक्षा काफी मजबूत कर चुकी हैं। होली के बाद चंद्रशेखर अपनी राजनीतिक पार्टी का भी ऐलान करने जा रहे हैं। पार्टी की घोषणा और अगले एक साल में उसकी गतिविधियां पूरी तरह से तय कर देंगी कि दलितों का नेता अब कौन होगा। यह तय हो जाएगा कि 2022 में मायावती के नाम पर दलितों को सोचना भी पड़ेगा या नहीं। अगर कांग्रेस या समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां चंद्रशेखर को अपने साथ लेती हैं तो मायावती के लिए समस्या और बढ़ सकती है।