इश्क को गजल से आबाद करने वाले जगजीत सिंह

गजल गायकी का वह सितारा जिसने अपनी आवाज से करोड़ों दिल जीते। उनके द्वारा गायी गईं गजलें लोंगो के होंठो से गुड़ की तरह चिपक गईं। आपने नुशरत फतेह अली खान को सुना? नहीं सुना! कोई बात नहीं! बेगम अख्तर को तो सुना ही होगा? इनको भी नहीं सुना तब भी कोई बात नहीं! आपने जगजीत सिंह को सुना ना? यही बहुत है।

बचपन में जब बारिश होती तो मन में बस एक ही ख्याल आता कि बारिश के पानी में अपने भी जहाज चलाये जायें और तब शुरू होता था बारिश मिले बचपन का सबसे खूबसूरत खेल। बेफिक्र बचपन में मालूम नहीं था कि जब बड़े होंगे बचपन छूटेगा तब जगजीत उस बचपन का सहारा बनेंगे। गुलजार जो अपने आप में खुद एक बाग हैं। जगजीत के बारे में कहते हैं कि “जगजीत बच्चा है, बहुत मासूम है” गुलजार की कही ये बात जगजीत की गजलों में दिखती है।

जगजीत की गाई एक गजल है “तेरे आने की जब खबर महके तेरी खुश्बू से सारा घर महके” जब भी अपने कमरे में रखे म्युजिक सिस्टम पर प्ले करता हूं जगजीत की आवाज कमरे में ऐसे ही महकने लगती है जैसे रातरानी दिन में महकने लगी हो। 14 साल का था जब पहली बार प्यार जैसा कुछ एहसास हुआ था, तब जगजीत ही सहारा बने।

आज तक नहीं जान पाया की जगजीत की गजलों का रात के साथ क्या सम्बन्ध है। दिनभर की थका देने वाली भागमभाग के बाद जब रात अपने बचपने से निकलकर ज्यों ज्यों जवान होती है, तब जगजीत की मुलायम कोमल मीठी आवाज उनको सुनने वाले को और जवान बनाती जाती है।

बचपन से निकलकर जब हम जवान होने लगते हैं, हुए नहीं होते तब इश्क और मोहब्बत अपनी दबिश देने लगते हैं और तभी कोई प्यारा लगने लगता है, बहुत प्यारा! और तभी जगजीत अपनी आवाज में “होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है” गाकर हमारे इन्तजार को मुकम्मल करते नजर आये। अब इश्क है तो महबूब की गलियों में आना जाना भी होगा। गुजरना तो एक बहाना है। हकीकत तो अपने प्रिय की एक झलक पाना होता है। आखिर मंजिल भी तो वही है। प्रेमी रास्तों कि परवाह कहां करते हैं उन्हें तो बस अपनी मंजिल अपने माशूक से मतलब होता है। ऐसे में जब हौसले कम पड़ने लगें या फिर रास्तों की फिक्र सताने लगे तब जगजीत पास आकर धीरे से कान में ” याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंजर भूल गये, उसकी गलियों से जब लौटे तो अपना ही घर भूल गये” फुसफुसा जाते हैं।

रात में पढ़ते पढ़ते नींद आने लगी है सर दर्द करने लगा है क्या किया जाये? चाय और जगजीत सिंह की गजलों का कॉकटेल नींद और सर दर्द को दूर करने का सबसे अच्छा नुस्खा साबित होता आ रहा है। पहला प्यार हो या फिर पहली बार दिल टूटा हो हर बार जगजीत अपनी मखमली आवाज के साथ खेवनहार बनकर बगल में बैठे मिले।

जिन्दगी है तो जीना पड़ेगा और जीने के लिये कुछ करना पड़ेगा ऐसे में घर से बाहर जाना होता है कभी पढ़ने के लिये तो कभी नौकरी के लिये क्योंकि इन्सान ख्वाहिसों का पुलिंदा है। घर छोड़ दिया याद आ रहा है वो पीपल का पेड़ जिसके नीचे गुल्ली डंडा खेला करते थे आंगन में लगा नीम का पेड़ जिसपर सावन का झूला अभी तक डला है। आखिर में अपना घर याद आ ही जाता है और तब अनायास ही होंठ “हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चांद” गुनगुनाने लगता है।

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