क्या सिर्फ दिवाली के दिन की जागरूकता हमारे पर्यावरण को बचा सकती है?

दिवाली आने में बस कुछ ही दिन बच गए हैं, दिवाली प्रेम और प्रकाश का त्योहार है। दिवाली आते ही लोगों के चेहरे की रौनक बढ़ जाती है, आस-पास का माहौल खुशनुमा हो जाता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में उत्साह का माहौल रहता है लेकिन हर बार दिवाली हमें कुछ अच्छी यादों के साथ कुछ भयावह यादें भी दे जाती है।

किसी को दिवाली ढेर सारी खुशियां दे जाती है तो किसी को सिर्फ ग़म। अगर देखा जाए तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी के ऊपर दिवाली का कुछ ना कुछ प्रभाव तो पड़ता ही है। दिवाली आते ही एक सबसे बड़ी बात यह होती है कि हर तरफ पर्यावरण को लेकर बहस शुरू हो जाती है। ये बहस बहुत ज़रूरी है लेकिन सिर्फ एक ही दिन क्यों?

क्या यह हवा सिर्फ एक ही दिन बहती है? क्या सूर्य सिर्फ एक ही दिन उगता है? नहीं ना! फिर पर्यावरण की बहस सिर्फ दिवाली पर ही क्यों? पर्यावरण की बहस तो हर दिन होनी चाहिए। हमारा अस्तित्व जिससे है हम उससे मुँह कैसे फेर सकते हैं। मानव जीवन में प्रकृति के महत्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

वैसे, जब से इस धरती पर मनुष्य विकसित हुआ है तब से लेकर आज तक मनुष्य ने कोई कसर नहीं छोड़ी अपने भगवान (प्रकृति) का मखौल उड़ाने में। हमें पता है कि आज के वक़्त में हम प्रकृति को वो सब चीज़ नहीं लौटा सकते जो उसने हमें हजारों वर्षों से दिया है और प्रकृति हम मनुष्यों से कुछ मांग भी नहीं रही है क्योंकि प्रकृति तो दात्री है, वो सिर्फ देती है लेकिन हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्रकृति को सम्मान दें।

जितना संभव हो हम उसकी भी फ़िक्र करें, ये प्रकृति है तभी हमारा वज़ूद भी है। हमें सिर्फ दिवाली के दिन फ़र्ज़ी बहस कर प्रकृति का मखौल नहीं उड़ाना चाहिए बल्कि हमें अपनी ज़िम्मेदारी समझ इस प्रकृति को सहेजना चाहिए अपने लिए न सही अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ही हमें पर्यावरण से फिर वो संबंध स्थापित करना चाहिए, जो कई सौ वर्षों पहले से टूटता आ रहा है।

जितना प्रकृति हमें देती है, उसका एक अंश भी हम दे पाए तो प्रकृति हमसे खुश रहेगी। हमें हर दिन इस पर्यावरण की चिंता करनी होगी सिर्फ दिवाली के दिन अपनी फ़िक्र जताने से कुछ नहीं होने वाला क्योंकि हमारी बुरी आदतें हमें विनाश की ओर ले जा रही है।

विनाश तो निश्चित है बस हमें अपनी बुरी आदतों में सुधार कर उस विनाश की अवधि को थोड़ा आगे बढ़ाना है। यह तो हर एक मनुष्य को पता है कि उसका इस पर्यावरण के प्रति क्या कर्तव्य है लेकिन वो अपनी पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ ले रहा है, जिसका परिणाम भविष्य में बहुत भयावह होने वाला है।