विराट कोहली सदर होते हुए भी धोनी के नायब ही हैं

तेज हुंकार और जोश-ओ-खरोश के साथ सेनापतियों को अपने सैनिकों को ऊर्जित करते हुए बहुत देखा-सुना है हम सबने। मगर एक सेनापति ऐसा भी है जो साइबेरिया की सर्द हवाओं से भी ज्यादा शीतलता से अपने सैनिकों को प्रेरित करता है। ऐसे सेनानायक हैं महेंद्र सिंह धोनी और ये मैदान जंग का नहीं क्रिकेट का मैदान है।

गांगुली ने भारतीय टीम को जीतना भले सिखाया, मगर कभी विश्व विजयी नहीं बना पाए। जैसे 17वीं-18वीं शताब्दी के दशक में ब्रिटेन का सूरज नहीं अस्त होता था, मगर स्पेन की नौसेना उन्हें अक्सर औकात दिखाया करती थी, वैसे ही भारतीय क्रिकेट टीम सबसे जीतकर अक्सर ऑस्ट्रेलिया से हार जाती थी और हार भी ज्यादातर वन साइडेड होती थी।

ऐसे में ग्रेग चैपल नाम का फेनॉमेना आया, जिसने धोनी के भीतर की नेतृत्व क्षमता को बख़ूबी पहचान लिया। अब भारत को नया सदर मिला महेंद्र सिंह धोनी। कूलनेस को भीतर तक धारण किए और एडीसन के स्तर का प्रयोगधर्मी ये क्रिकेटर टीम को एक पारखी कुम्हार की तरह गढ़ने लगा। ये धोनी की ही मेहनत का नतीजा है जो आज अपने पास बेंच पे भी एक क्रिकेट टीम बैठी है, जो वर्तमान में खेल रहे ग्यारहों खिलाड़ी की अनुपस्थिति में भी शानदार खेल दिखा सकती है।

ऑस्ट्रेलिया नामक तिलिस्म का पटाक्षेप किया धोनी ने जब वीबी सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पे हराया, इसी सीरीज़ से हमें रोहित शर्मा की पोटेंशियल का वास्तव में पता चला, जो आज छक्के मारने में शिखर सम्राट है। इसके बाद तो धोनी जहाँ भी दौरा करने जाते, एक ट्रॉफी हाथ में ही ले आते।

20-20 वर्ल्डकप को जीतना उनके बारे में पूत के पाँव में पालने ही दिख जाना जैसा है, मने ये जीत ये बता रही थी कि अभी भारत के हिस्से और भी ट्राफियां थोंक के भाव आने वाली है। धोनी जैसा जजमेंट करना और परिस्थिति को स्वःस्थिति में बदलना और किसी के बूते की बात नहीं है। इसी वर्ल्डकप का लास्ट ओवर जोगिन्दर शर्मा को देना और फिर उस निर्णय का एकदम सटीक और निशाने पे बैठना धोनी की दूरदर्शिता और त्वरित निर्णयशीलता की थाती है।

इसके बाद 2011 के एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की वर्ल्डकप ट्रॉफी को टीम इंडिया की झोली में डालना धोनी की सर्वकालिक महान उपलब्धि थी। धोनी का सफर यही नहीं थमा, उन्होंने चैंपियंस ट्रॉफी में भी टीम को विजय दिलाई।

इसके अलावा उन्होंने टीम को टेस्ट में भी नंबर एक पायदान पे ला खड़ा किया। मने उन्होंने क्रिकेट के तीनों में टीम को सर्वश्रेष्ठ पायदान पर सुशोभित कर दिया। वो कहते है कि जब ऊंचाई एकदम अंतिम बिंदु पर आ जाती है तो फिर नीचे आने के सिवाय कोई चारा नहीं होता। अलबत्ता कई लोग पैराशूट लगाकर उतरते है तो कई लोग औंधे मुंह गिर जाते है। मगर धोनी जैसा समझदार आदमी पैराशूट तो रखता ही है।

दरअसल भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट में लगातार हारने लगी थी और धोनी की व्यक्तिगत परफॉमेंस भी नीचे गिरती जा रही थी। ऐसे में अचानक ही एक दिन धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का फैसला कर लिया और टेस्ट के नए सदर(कप्तान) बने कोहली, जो अभी तक नायब(उपकप्तान) थे। इसी बीच कोहली एकदिवसीय क्रिकेट में भी कप्तान बन गए।

लोगों को लगा कि धोनी युग का पटाक्षेप हो गया। मगर धोनी फोटॉन जैसे हैं, जो कभी ख़त्म नहीं होता। धोनी ने अपना खोया हुआ व्यक्तिगत प्रदर्शन हासिल कर लिया और इसी के साथ तख़्त-ए-ताउस के अभिलेखीय (रिकॉर्ड) न सही मगर वास्तविक सरताज भी बन गए।

कोहली टीम के कप्तान भले हैं, मगर वो कप्तानी नहीं करते। मैदान पर धोनी ही कप्तानी करते हैं। मुश्किल परिस्थितियों में फील्ड सेलेक्शन से लेकर गेंदबाजी चयन तक का सारा काम धोनी ही करते है। डेथ ओवरों में टीम का कप्तान थर्ड मैन पर लगता है मने तीस गज के दायरे में, ऐसे में कोई तो जरूर होता होगा जो टीम को गाइड करता होगा और वो कोई और नहीं धोनी होते हैं।

टीम के सार्वकालिक सदर महेंद्र सिंह धोनी है और जब तक क्रिकेट के मैदान पर वो रहेंगे, सदर बनकर ही रहेंगे।