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Tag: हिंदी साहित्य

पुस्तक समीक्षा: ज़िंदगी को चाहिए नमक

पुस्तक समीक्षा: ज़िंदगी को चाहिए नमक

लोकल डिब्बा टीमOctober 22, 2020July 6, 2025

'जिंदगी को चाहिए नमक' किसी साहित्यकार नहीं, एक युवा पत्रकार के क़लम से निकली अनुभूतियों का संग्रह है.

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

लोकल डिब्बा टीमMarch 9, 2020November 16, 2022

डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..

रामधारी सिंह दिनकर युद्ध की संभावना पर क्या कहते?

रामधारी सिंह दिनकर युद्ध की संभावना पर क्या कहते?

लोकल डिब्बा टीमSeptember 23, 2019July 6, 2025

दिनकर व्यक्ति नहीं रहे। दिनकर एक चेतना हैं। एक राष्ट्र की चेतना। केवल भारत की नहीं, किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र…

बाबा नागार्जुन: एक अल्हड़ जनकवि, जिसकी पीड़ा में पलता है भारत

बाबा नागार्जुन: एक अल्हड़ जनकवि, जिसकी पीड़ा में पलता है भारत

लोकल डिब्बा टीमJune 30, 2018June 30, 2018

नागार्जुन की खासियत है कि उन्हें कोई अनगढ़ साहित्यकार पढ़े तो भाषाई रूप से समृद्ध हो जाए.

किस्सा: मरते-मरते लाला ने ऐसा क्या किया जो गांव भर पहुंच गए जेल

किस्सा: मरते-मरते लाला ने ऐसा क्या किया जो गांव भर पहुंच गए जेल

लोकल डिब्बा टीमApril 27, 2018May 1, 2018

किसी गांव में एक मुंशी रहता था, नाम था खटेसर लाल। बहुत धूर्त और काइंया किस्म का आदमी था। जितनी…

नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा

नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा

लोकल डिब्बा टीमApril 17, 2018May 1, 2018

नज़र आता है डर ही डर, तेरे घर-बार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा. यहाँ तो…

गांव आज भी धर्म नहीं समझ पाते तभी जुम्मन यादव होते हैं और रघुवीर खान

गांव आज भी धर्म नहीं समझ पाते तभी जुम्मन यादव होते हैं और रघुवीर खान

लोकल डिब्बा टीमJanuary 16, 2018January 17, 2018

मेरे गांव में जुम्मन यादव होते हैं रघुवीर खान क्योंकि मेरा गांव हिन्दू मुसलमान नहीं जानता

प्रजातंत्र एक अबूझ पहली है जिसका आधार भ्रम है

प्रजातंत्र एक अबूझ पहली है जिसका आधार भ्रम है

Pavan Kumar YadavJanuary 1, 2018January 1, 2018

प्रजातंत्र के रक्षकों के लिए संविधान सिर्फ एक ढाल बनकर रह गया है जो समय-समय पर इन्हें सत्य पर असत्य…

कविता- तुम जानती हो चुराए हुए चुम्बनों का स्वाद?

कविता- तुम जानती हो चुराए हुए चुम्बनों का स्वाद?

लोकल डिब्बा टीमNovember 9, 2017

तुम्हारे कुछ चुंबन बचे हैं मेरे होठों पर कुछ मेरे भी बचे हों शायद तुम्हारे पास ये हमारे पहले चुंबन…

आज भी भटक रहा है गुनाहों का देवता

आज भी भटक रहा है गुनाहों का देवता

अमन गुप्ताSeptember 14, 2017September 15, 2017

गुनाहों का देवता जितनी बार पढ़ता हूं हर बार कुछ नया पाता हूं। चन्दर इस बार पहले से ज्यादा भ्रमित…

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